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जीवन का प्रबंधन सीखाता है श्रीराम का चरित्र

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श्रीराम के चरित्र की व्याख्या करना किसी मुख के लिए और लिखना किसी कलम के लिए संभव नहीं है। उनके चरित्र की व्याख्या अपार है जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। श्रीराम के चरित्र एवं उनके जीवन के आदर्शों के माध्यम से हम अपने अपने जीवन का प्रबंधन सीख सकते हैं। हममें से अधिकांश लोग राम को मानते हैं लेकिन राम की नहीं मानते, जिस दिन हमने राम की मान ली तो जीवन में कोई कष्ट रह ही नहीं जाएगा। वास्तव में श्रीराम ने अपने जीवन में मनुष्य से देवतत्व तक की यात्रा को न केवल तय किया है बल्कि चरित्र के सर्वश्रेष्ठ स्तर को हासिल करने का उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने जीवन में हर स्थिति और व्यक्ति के साथ सर्वश्रेष्ठ संबंध निभाकर जीवन का प्रबंधन भी समझाया है और समाज के अंतिम तबके को अपने साथ जोड़कर समाजवाद को भी परिभाषित किया है।  बालपन में ही अपने भाईयों के प्रति स्नेह हो या गुरू के आश्रम पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करना, बात पिता के वचन को निभाने की हो या सखाओं से मित्रता निभाने की, देश में छूपे आक्रंताओं को मारना हो या मर्यादा को प्रस्तुत करना हर जगह श्रीराम ने अपने कर्मों से मनुष्य को जीवन का प्रबंधन सीख

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं

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साल  1983  में एक फिल्म आई थी मासूम। इस फिल्म में गुलजार साहब का लिखा एक बहुत ही मशहूर गाना है   ‘‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं’’   जीवन के उतार-चढ़ाव ,  गम ,  दर्द और समझौतों को बयां करता यह गीत आज के जीवन पर भी उतना ही सामयिक नजर आता है। हम सभी कहीं न कहीं जिंदगी के सवालों से परेशान हैं। अगर गहराई में जाकर सोचें तो हमें नजर आएगा कि इस तनाव का कारण है हमारी उम्मीदें। आपने लोगों को अक्सर बोलते सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि मैंने उसके लिए कितना कुछ किया लेकिन उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया ,  मेरी जरूरत के समय वह मेरे साथ नहीं था या मैंने हमेशा उसे प्राथमिकता दी लेकिन उसकी जिंदगी में मेरी इंर्पोटेंस नहीं है।   चिंता ,  शंका ,  भय ,  अहंकार ,  स्वार्थ और पूर्वाग्रह जैसी भावनाओं के कारण हमारे जीवन में तनाव बढ़ रहा है और इस तनाव का सबसे   बड़ा   कारण है लोगों का हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना।   असल में हम अपने परिवार ,  दोस्त ,  प्रेमी ,  रिश्तेदार ,  बॉस ,  ऑफिस   के सहकर्मी और सोसायटी से इतनी उम्मीदें पाल लेते हैं कि जब वह पूरी नहीं होतीं तो हमें दुख होता है। कई बार जब हम

गुलाल गलाकर भूला दीजिए गिले-शिकवे

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    होली की बात जब भी होती है तो हमें सबसे पहले रंग दिखाई देने लगते हैं , इसके साथ ही नजर आती है खूब सारी मस्ती और धमा- चौकड़ी लेकिन होली के साथ एक वाक्य प्रचलित है बुरा न मानो होली है ... यह वाक्य अपने आप में काफी गहरे अर्थ लिए हुए है। हम केवल मस्ती में किसी को रंग लगाने पर वह बुरा न माने वहां तक ही इसके अर्थों को समझ पाते हैं लेकिन वृहद अर्थों में समझा जाए तो यह वाक्य हमें बताता है कि अगर किसी से बुरा माने बैठे हो या कोई आपसे कुछ बुरा मानकर दूर हो गया है तो उसे मनाने या क्षमा करने के लिए रंगों के उत्सव से बेहतर अवसर ओर कोई नहीं हो सकता। रंगों से सराबोर होने वाले आगामी पूरे सप्ताह हम मान लें कि जीवन के सारे गिले-शिकवे भूलाकर जिंदगी को गले लगाएंगे और रंगों की तरह खिल खिलाएंगे। तो इस होली आप भी किसी के गालों पर गुलाल गलाकर भूला दीजिए सारे गिले-शिकवे। इस होली पर आपके अपने संबंधों की ओर नजर घूमाईये। जरा दिमाग पर जोर डालकर सोचिए कि आपके संबंधों में क्या निस्वार्थ प्रेम और विश्वास है। अगर नही तो कहां कमी आ रही है। चलिए हम सबसे पहले यह समझते हैं कि संबंधों का आधार क्या है। शायद आपको लगता ह

जीवन की सबसे बड़ी क्षति है किसी की नजरों में गिरना

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  जीवन में हम हमेशा ही अपनी इच्छाओं के पीछे भागते रहते हैं ,  हम हर काम अपने प्लेजर को बढ़ाने और पेन को कम करने के लिए करते हैं।  कई बार हम इच्छाओं को पूरा करने के लिए अनजाने में ही अपनी सीमाओं को पार कर देते हैं। यह सीमाएं वैचारिक ,  पारिवारिक या सामाजिक हो सकती हैं। ऐसे हालात में हमें खुद ही अंदाजा नहीं रहता कि हम किस रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन कई बार जब तक हम इसे समझ पाते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है और हमें अपने ही कार्यों पर पछतावा होने लगता है।  इससे बचने के लिए जीवन में अपने नियम बनाना और इंद्रियों पर काबू करना जरूरी है। याद रखिए कि इंसान रणभूमि में गिरकर एक बार उठ सकता है लेकिन किसी की नजरों में नहीं ,  इसलिए कोशिश कीजिए कि किसी की नजरों में न गिरें।  किसी की नजरों में गिरना जीवन की सबसे बड़ी क्षति है। आपने जीवन में कई खेल खेले होंगे क्रिकेट ,  फुटबॉल ,  कैरम या शतरंज। अब जरा याद कीजिए कि इन खेलों में जीत-हार कौन तय करता है। शायद आप सोच रहे होंगे खेल में प्रदर्शन ,  आत्मविश्वास और कौशल यह फैसला करते हैं लेकिन यह गलत है ,  जब आप गहराई से सोचेंगे तो आपको पता चलेगा कि हर खेल मे

जीवन में सुकून देगा "मन से संवाद"

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हम सभी को जीवन में शांति चाहिए। कभी हम इसे संसार में ढूंढते हैं तो कभी संन्‍यास में, कभी ध्‍यान में ढूंढते हैं तो कभी भजन में लेकिन जहां हम इसे ढूंढने जाते हैं मन कहता है कि शांति यहां नहीं वहां मिलेगी। असल में मन का स्‍वभाग ही हमें भ्रमित करना है, मन का स्‍वभाव ही है कि वह कहीं लगता नहीं, इसलिए मन को कहीं लगाने की कोशिश मत कीजिए। मन को समझने की कोशिश कीजिए और उससे संवाद कीजिए। तभी जीवन में आत्‍मीय शांति मिलेगी। असल में हमारा मन रियालिटी और इमेजिनेशन में फर्क नहीं कर पाता, जैसे हम कोई सपना देखते हैं तो हम घबरा जाते हैं, पसीना आने लगता है, कभी-कभी तो हम चिल्‍लाने भी लगते हैं। हमारा मन इमेजिनेशन में भी हमारी बॉडी के साथ वैसा ही स्‍वभाव करता है जैसा रियालिटी में करता है। जैसे ही हमारा सपना खत्‍म होता है या नींद खुलती है तो हम वास्‍तव‍िकता को रिकॉल करते हैं और नॉर्मल हो जाते हैं, बस ऐसा ही हमें जीवन के साथ करना है। अगर आपके साथ कुछ बुरा हुआ, आपसे कोई गलती हुई या कोई बात आपके मन को कचोट रही है तो यह याद रखिए कि बीते हुए कल की बात को न हम बदल सकते हैं और न ही वह हमारे वर्तमान को प्रभावित कर

ऐसे अ‍पडेट करें अपने दिमाग के सॉफ्टवेयर को

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हम सभी अपने जीवन में सुख पाना चाहते हैं ,  जीवन की भागदौड़ के बीच अपने सपनों की चाहत को सुख मानकर उनके पीछे भागते हैं। लोगों को लगता है कि उनके सपने पूरे होने की अनुभूति ही सच्‍चा सुख है लेकिन यह गलत है ,  बल्कि यह उस प्रकार है   जैसे मृग कस्‍तूरी की खूशबू के पीछे सारी जिंदगी भागता है लेकिन वह कस्‍तूरी उसी के अंदर होती है। इसी तरह खुशियां हमारे अंदर हैं   लेकिन हमारे दिमाग में जो सॉफ्टवेयर है वह हमें हमारी उपलब्धियों ,  सकारात्‍मकताओं और हासिल चीजों की जगह वह दृश्‍य दिखाता है जो हम हासिल नहीं कर पाए ,  फिर हम दुखी होते हैं और सुख की तलाश में भागने लगते हैं।   ऐसे में हम दिमाग का सॉफ्टवेयर अ‍पडेटकर   सच्‍ची खुशी हासिल कर सकते हैं। हम कई बार सोचते हैं कि हमें अपनी ड्रीम वाइफ – ड्रीम हस्‍बेंड ,  ड्रीम जॉब ,  ड्रीम डिग्री ,  ड्रीम कार ,  ड्रीम मोबाइल या अन्‍य संसाधन चाहिए तब हम सच्‍ची खुशी हासिल करेंगे लेकिन अपनी   लाइफ को फ्लैशबैक करके देखेंगे तो पता चलेगा कि इनमें से कई चीजें हासिल करने के बाद क्‍या हमें सच्‍ची खुशी मिल गई ,  अधिकांश का जबाव होगा नहीं ,  क्‍योंकि जब तक हम किसी चीज को प

जिम्मेदारियां निभाने से मिलेगा ‘‘आजादी का अमृत’’

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हम देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। पूरा देश में तिरंगे लहलहा रहे हैं। हम सभी एक-दूसरे को स्वतंत्रता की बधाई दे रहे हैं क्योंकि आजादी शब्द ही ऐसा है जो स्वच्छंदता का अहसास कराता है। स्वतंत्रता शब्द सुनते ही हमें अपने अधिकारों का अनुभव होने लगता है लेकिन हम अपने अधिकार पाने की दौड़ में कई बार इस सीमा तक चले जाते हैं कि अपनी जिम्मेदारियों का बोध ही भूल जाते हैं। ऐसे में हमारे नैतिक जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। अधिकार हमारे लिए जरूरी हैं लेकिन देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियां अत्यंत जरूरी हैं। हम सभी जब अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे तभी हमें ‘‘आजादी का अमृत’’ मिलेगा। अधिकार और कर्तव्‍य एक-दूसरे के सहगामी हैं ,  यह स्‍पष्‍ट करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं। एक बार एक गांव में चार मित्रों ने साझेदारी में गाय खरीदी। यह तय हुआ कि प्रतिदिन एक-एक साझेदार उस गाय को रखेगा।   प्रतिदिन हर व्‍यक्ति उस गाय का दूध निकाल लेता लेकिन उसे चारा नहीं खिलाता ,  वह सोचता कि कल वाले साझेदार ने चारा खिलाया ही होगा और कल फिर उसे चारा मिल जाएगा तो मैं गाय को चारा नहीं भी खिलाऊंगा तो क्‍या फर्क पड