खुश रहना है तो दुनिया को नहीं ''खुद को बदलें''

 


हम सभी जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं,  कुछ हासिल करना चाहते हैं, कुछ नया करना चाहते हैं, इन सपनों को साकार करने के लिए हम प्रयास करते हैं कि परिवार के लोग उनके सोचने के तरीके को बदल दें, समाज के लोग नजरिए को बदल दें और ऐसा होने पर हम दुनिया को बदल देंगे लेकिन ऐसा करने में हम सफल नहीं हो पातेक्‍योंकि किसी ओर चीज को बदलना न तो हमारे अधिकार में है न ही उसे बदलकर हम अपने लक्ष्‍य तक पहुंच सकते हैं। अगर जीवन में खुश रहना हैं तो दुनिया को नहीं खुद को बदलें, दुनिया अपने आप ही हसीन लगने लगेगी

सोचिए कि आपको किसी पर्वत पर चढ़ना है तो आप पर्वत के आकार को बदलने का प्रयास करेंगे या पर्वत पर चढ़ने की तैयारी में जुटेंगे हम पर्वत को अपने योग्‍य नहीं बना सकते लेकिन खुद को पर्वत के योग्‍य बना सकते हैं, ऐसा ही हमारे जीवन के साथ भी होता है। हम दुनिया को अपने अनुसार बदल नहीं सकते लेकिन दुनिया तक अपनी विचारधारा पहुंचा सकते हैं



खुद को बदलने से मेरा अर्थ विचारों को रचनात्‍मक करने से है फूलों को देखिए उनका काम है खूशबू देना, वह कभी नहीं सोचते कि काटों को पेड़ों से हटा दूं, पत्तियों को अलग कर दूं या अपने आकार को बदल लूं क्‍योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र में है ही नहीं, इसी तरह दुनिया को बदलना या किसी व्‍यक्ति के विचारों को अपने अनुसार ढाल देना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है जिस तरह फूल केवल सुंदरता और खूशबू बिखेरते हैं उसी तरह हमें भी केवल अपनी विचारधारा समाज की ओर बिखेरनी होगी

जीवन में हम अपने आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट होते हैं तो हर चीज में समस्‍या नजर आने लगती है हमें लगता है कि दुनिया हमें समझ ही नहीं रही यहां गलती दृश्‍य की नहीं दृष्‍टी की है आसमान में उड़ते बादलों में बनने वाली आकृतियों को देखा है इन आकृतियों को हम अपने नजरिए के अनुसार ही परिभाषित कर पाते हैं बादल का एक टुकड़ा एक ही समय किसी को शेर की तरह नजर आता है तो किसी को खरगोश की तरह हमारा जीवन भी ऐसा ही है अवसर सभी के लिए समान हैं लेकिन जरूरत है केवल नजरिए की वास्‍तव में यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने समय और समाज की स्थिति को किस नजरिए से देखते हैं कोई भी घटना हमें उतनी ही प्रिय या अप्रिय लगती है जितनी हमारी दृष्‍टी उसे हमें समझाती है जीवन में दृश्‍य हमेशा सकारात्‍मक मिलें यह जरूरी नहीं लेकिन अगर हमारी दृष्‍टी सकारात्‍मक है तो दृश्‍य अपने आप सुंदर नजर आने लगते हैं


हमें बाहर की दुनिया को बदलने का नहीं बल्कि अपने अंदर की दुनिया को समझने का प्रयास करना चाहिए जब हम अपने अंदर की दुनिया को समझ जाएंगे तो दुनियादारी की मृगतृष्‍णा ही खत्‍म हो जाएगी,  आत्‍मानंद के आभास की कस्‍तूरी से हम खुद भी महकेंगे और दुनिया को भी इस सुगंध से मंत्रमुग्‍ध कर देंगे

टिप्पणियाँ

  1. किसी ने खुब कहा है "नजरें बदली नजारे बदल जायेगें " आपने यही समझाने के लिए बहुत ही सुन्दर लेख लिखा है धन्यवाद

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  2. अत्यंत सुंदर प्रभावपूर्ण लेख

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