सारे शिकवे गिले भुला कर गले लगा लो जिंदगी को
क्षमा या माफी दो अक्षरों के यह शब्द कहने, सुनने और लिखने में जितने सरल होते हैं। इन्हें व्यवहार में लाना उतना ही मुश्किल होता है। यह बहुत हिम्मत का काम है। क्षमा मांगने के लिए आपको अहंकार छोड़कर विनम्रता के धरातल पर आना पड़ता है, वहीं क्षमा करने के लिए भी उतनी ही उदारता की जरूरत होती है। क्षमा करने या मांगने के लिए सिर्फ दिल को थोड़ा बड़ा करने और अहम को छोड़ने की जरूरत है। अगर आप किसी से नाराज हैं या कोई आप से गुस्सा होकर बैठा है तो उसे मनाने का अवसर रंगों के उत्सव से बेहतर और कोई नहीं हो सकता। रंगों से सराबोर होने वाली सुबह को हम ठान लें कि गिले-शिकवे को भूलाकर जिंदगी को गले लगाएंगे और रंगों की तरह खिल खिलाएंगे। कोरोना के कारण भले ही हम हर किसी से मिलकर उसे रंग नहीं लगा सकें लेकिन दूसरों की गलतियों को भूलाकर बेरंग जिंदगी में संबंधों के रंग जरूर सजा सकते हैं। हमारा सारा जीवन संबंधों पर टिका है। कहीं पारिवारिक संबंध है, तो कहीं सामाजिक और कहीं व्यापारिक संबंध। कुछ संबंध प्रेम पर निर्भर होते हैं तो कुछ लाभ पर। रिश्तो में आदान-प्रदान जरूरी है। जहां इस आदान-प्रदान में असमानता आ जाती है वह...