पहले सुविधाएं कम लेकिन सुख ज्यादा था…
आपने अक्सर बुजुर्गों को बोलते सुना होगा कि हमारे जमाने में लोग सबकी मदद करते थे , सब एक-दूसरे के सुख-दुख में खड़े रहते थे और संसाधन कम थे लेकिन परिवार में सुख बहुत था। कई बार हम इन बातों को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं और यह सोचते हैं कि अब जमाना बदल गया है लेकिन क्या मौजूदा परिस्थिति हमें एक बात सोचने पर मजबूर कर रही है कि संसाधनों की अंधी दौड़ में कहीं हम अपना सुकून तो पीछे नहीं छोड़ आए । आज टीवी , मोबाइल , कम्प्यूटर , इंटरनेट , सोशल मीडिया सबकुछ होने के बाद भी क्या हम खुश हैं , क्या वाकई जिस शिक्षा , शोध और शोहरत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमने अपनी बुनियाद छोड़ी थी , उस लक्ष्य की ओर हम सही दिशा में हैं। शायद अधिकांश लोग इस बात से सहमत हों कि पहले सुविधाएं कम थीं लेकिन सुख ज्यादा था , अब सुविधाएं ज्यादा हैं लेकिन सुख कम है । आज कोरोना महामारी के इस दौर में यह स्थिति बन गई है कि दौलत , शोहरत , लग्जरी लाइफ स्टाइल , महंगे गेजेट्स और हाईलेवल कनेक्शंस के बावजूद भी जिंदगी की जंग जीतना मुश्किल हो गया है। इंसान अपना सबकुछ दाव पर लगाकर अपनों की जान बचाना चाह रहा है। हर तरफ...