पहले सुविधाएं कम लेकिन सुख ज्यादा था…
आपने अक्सर बुजुर्गों को बोलते सुना होगा कि हमारे जमाने में लोग सबकी मदद करते थे, सब एक-दूसरे के सुख-दुख में खड़े रहते थे और संसाधन कम थे लेकिन परिवार में सुख बहुत था। कई बार हम इन बातों को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं और यह सोचते हैं कि अब जमाना बदल गया है लेकिन क्या मौजूदा परिस्थिति हमें एक बात सोचने पर मजबूर कर रही है कि संसाधनों की अंधी दौड़ में कहीं हम अपना सुकून तो पीछे नहीं छोड़ आए । आज टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट, सोशल मीडिया सबकुछ होने के बाद भी क्या हम खुश हैं, क्या वाकई जिस शिक्षा, शोध और शोहरत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमने अपनी बुनियाद छोड़ी थी, उस लक्ष्य की ओर हम सही दिशा में हैं। शायद अधिकांश लोग इस बात से सहमत हों कि पहले सुविधाएं कम थीं लेकिन सुख ज्यादा था, अब सुविधाएं ज्यादा हैं लेकिन सुख कम है।
आज
कोरोना महामारी के इस दौर में यह स्थिति बन गई है कि दौलत, शोहरत, लग्जरी लाइफ
स्टाइल, महंगे गेजेट्स और हाईलेवल कनेक्शंस के बावजूद भी
जिंदगी की जंग जीतना मुश्किल हो गया है। इंसान अपना सबकुछ दाव पर लगाकर अपनों की
जान बचाना चाह रहा है। हर तरफ हाहाकार है लेकिन ऐसे हालातों में भी लोग मानवीयता
को बेच रहे हैं । इंसानियत को दाव पर रखकर मेडिसिन, इंजेक्शन
और अन्य प्राणरक्षक संसाधनों का काला कारोबार किया जा रहा है । दूसरी ओर अच्छी
नौकरी और बेहतर भविष्य के नाम पर अपनी मातृभूमि को छोड़कर विदेश गए लोग अब अपने
गांव लौटना चाहते हैं। क्या यही हैं वो दिन जिन्हें स्वर्णिम समझकर हमने भविष्य
के सपने बुने थे । समय साफ ईशारा कर रहा
है कि सिर्फ संसाधन की दौड़ में भागने और सुविधाओं को हासिल कर लेने से सुख नहीं
मिल जाता।
जिंदगी की गाड़ी से अगर हम पीछे मुड़कर देखेंगे तो हमें अपना पिछला दौर नजर आएगा जब हमारे पास सुविधाएं नहीं थीं लेकिन मानवीयता थी, संसाधन नहीं थे लेकिन संस्कार थे, लग्जरी लाइफ स्टाइल नहीं थी लेकिन सुकून था। दिल में कपट नहीं था, आंखों में छल नहीं था और माथे पर बल नहीं था लेकिन दिल में संतोष था। जैसे-जैसे हम संसाधनों की ओर आगे बढ़ते गए हम अपनों से दूर होते गए। आज एक कमरे में तीन लोग बैठकर अपना-अपना मोबाइल चलाते हैं लेकिन एक-दूसरे की सुध नहीं लेते। अब जो दौर है ऐसा लगता है कोई किसी का नहीं है, हम मोबाइल और इंटरनेट के जाल में ऐसे फंसे हैं कि खुद की खबर नहीं है, पैसा है, इज्जत है, बंगला है, कार है, जमीन है लेकिन सुकून नहीं है। एक बार सोचें कि क्या पाने की खातिर हमने क्या-क्या गवाया है।
एक बात में आप सभी से और खास तौर पर युवाओं से कहना चाहूंगा कि हमेशा याद रखें कि आपके माता-पिता ने अपने जीवन में जो दर्द झेला है वह कभी नहीं चाहते कि वह आपको झेलना पड़े । वह चाहते हैं कि तुम्हारे जीवन में हमेशा रोशनी हो, हर मौसम खुशनुमा हो, तुम्हारा जीवन सुहाना हो और उन्नति व प्रगति की मंजील की ओर तुम आगे बढ़ो लेकिन इस मंजील पर पहुंचने के लिए कभी अपनी बुनियाद मत छोड़ देना। दूसरी बात विशेष तौर पर माता-पिता के लिए है कि बच्चे को केवल महंगे स्कूल में पढ़ाने या बेहतर जॉब प्रोफाइल की ओर आगे बढ़ाने के साथ यह भी सोचें कि उसमें नैतिक मूल्य और मानवीयता बरकरार रहे। बच्चों को कुछ भी बनाने से पहले एक अच्छा इंसान बनाएं, इसके बाद वह सबकुछ बन सकता है। याद रखना नैतिकता और मानवीयता हमारी जड़ है, जो हमारे जीवन का पोषण करती है वही पेड़ सबसे मजबूत होता है जिसकी जड़ें जमीन में अंदर तक होती हैं, जड़ों की मजबूती के बिना न पेड़ का अस्तित्व है न हमारा । अगर हम अपनी विरासतों को लेकर आगे बढ़े तो यकीनन सुविधाओं-संसाधनों के साथ सुख और सूकुन भी हमारे साथ होगा।
बहुत ही शानदार, काश वह दिन कोई लौटा दे,सुख के पिछे भागते भागते न जाने कहां पहुंच गए हैं। अच्छे और प्रोत्साहित करने वाले लेखों के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा व वास्तविकता वाला आलेख
जवाब देंहटाएंअतीत हमेशा वर्तमान से अच्छा लगता है।👍
जवाब देंहटाएंओल्ड इज गोल्ड
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल सुमित जी आपने जो आज का ब्लॉक ब्गाया है पिछले कई दशकों में अगर आप पीछे जाएं तो पहले के जमाने सुविधाएं बहुत ही संसाधन कम थे चाहे वह मोबाइल हो टेलीफोन हो टेलीविजन हो हर आदमी तक आस पड़ोस में जो लोग रहते थे वही उनके सबसे अति प्रिय अति सहयोगी होते थे किसी भी परिस्थिति में दुख मिलता है तो सगे भाई मामा चाचा बुआ फूफा सब बाद में सहयोग को आते थे सूचना के अनुसार लेकिन आज जमाना बदल गया है करुणा जैसी महामारी में लोगों को अपनों से अपनों को दूर कर दिया है इस दुखद घड़ी में मनुष्य मनुष्य के मुक बधिर पक्षी पशु जानवर के काम आए यथासंभव जो मदद अपने स्तर पर कर सकते हैं वह बिल्कुल करना चाहिए यही जीवन है यही सोच प्रथम नागरिक से अंतिम नागरिक की होनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है आप एवं आपके पूरे परिवार जन स्वस्थ एवं दीर्घायु रहें यही ईश्वर से कामना है जय हिंद जय जवान जय किसान जय भारत
जवाब देंहटाएंवर्तमान का बहुत ही सुन्दर चित्रण है इस लेख में
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुमित भैया
बिछड़े हुए स्वजनों की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप एक वृक्ष अवश्य लगायें ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी पर आक्सीजन बची रहे ।
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