आपका सहारा छिन गया तो दूसरों का सहारा बनिए
मौजूदा समय आपदा का समय है, कहीं मानवता के कराहने की तो कहीं अपनों को खोने की चित्कार है। इस महामारी ने किसी के घर का चिराग बुझा दिया तो किसी के सिर से आसरा छीन लिया। अपनों को खोकर लोगों की जिंदगी ठहर सी गई है, जिसके जीने का सहारा चला गया हो उसका दिल बार-बार यही कहता रहता है कि मुझे छोड़कर तुम कहां चले गए… ऐसे में किसी को जिंदगी में कोई रास्ता नजर नहीं आता, जो हमें छोड़कर चला गया वो तो वापस नहीं आ सकता लेकिन उसकी अधूरी ख्वाहिश, छूटे हुए काम और उसकी स्मृति में प्रयासों के कुछ कदम बढ़ाकर हम उसे याद कर सकते हैं। अगर आपका सहारा छीन गया है तो दूसरों का सहारा बनिए। यही उसके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिससे हमें उसके होने का अहसास भी हो और जिंदगी को सूकुन भी मिल सके।
यह सही है कि मुरझाए हुए फूल बहारों के आने पर भी नहीं खिल सकते और बिछड़े
हुए व्यक्ति की कमी हजारों लोग मिलकर भी पूरी नहीं कर सकते। हर समय जाने वाले की यादों के
कांटे हमारे दिल में चुभते हैं। न दर्द ठहरता है, न आंसू रूकते हैं और न ही दिल
इस बात को मानने को तैयार होता है कि अब वो हमारे बीच नहीं है लेकिन किसी के जाने के बाद
अगर हम खुद के जीवन को भी रोक देंगे तो वह जहां से भी हमें देख रहा होगा दुखी ही होगा
और उसकी आत्मा को भी शांति नहीं मिलेगी। इसलिए हम कुछ
ऐसा प्रयास करें कि उसके सपनों को पूरा कर या किसी ओर की मदद कर हम उसे सच्ची श्रद्धांजलि
दे सकें। चलिए जानते हैं कुछ ऐसे ही प्रयासों के बारे में
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के व्यवसायी व साहित्यकार श्री आलोक सेठी
के पिता कमलचंद सेठी जी की तबीयत बिगड़ने पर जब उन्होंने ऑक्सिजन व अन्य सुविधाओं
वाली एंबुलेंस ढूंढी तो वह नहीं मिल सकी, वैकल्पिक व्यवस्था से उन्होंने पिता का
इंदौर में उपचार कराया लेकिन महाराष्ट्र के पुसद में पिता को नहीं भेज पाने का मलाल
उन्हें रहा। पिता के निधन के बाद उन्होंने जरूरतमंद मरीजों को सुविधाजनक एंबुलेंस
देकर अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि दी। इसी तरह खंडवा के ही श्री मदनी के भतीजे
की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई, दुर्घटना का कारण ढूंढने पर
पता चला कि पानी के टेंकर के ब्रेक कमजोर होने के कारण ऐसा हुआ, परिवार पर दुख के पहाड़ टूटने की घड़ी में भी उन्होंने पहल की और मैकेनिक
को बुलाकर कहा कि शहर में जितने टैंकरों के ब्रेक कमजोर हैं, जाकर उन्हें ठीक करो। वे चाहते थे कि किसी ओर के साथ ऐसी घटना न हो। एक अन्य मामले में नदी में नहाने
के दौरान बेटे की डूबने से मौत के बाद उत्तर भारत के एक दंपत्ति पूरे देश में घूमघूम
कर नदियों व नहरों के पास दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में सूचना बोर्ड लगा रहे हैं इसके साथ प्रशासन को पत्र
देकर ऐसे स्थानों पर जलस्तर बढ़ने के दौरान सायरन बजने के प्रावधान की अपील कर रहे
हैं। सड़क दुर्घटना
में अपने बेटे को खोने के बाद एक शिक्षक दंपत्ति सड़क सुरक्षा के लिए जगह-जगह कैंप
लगाकार युवाओं को जागरूक कर रहे हैं। अपनों को खोने के गम को कोई दूर नहीं कर सकता लेकिन ऐसे
प्रयास से उन्हें बेहतर ढंग से याद किया जा सकता है।
इस महामारी के दौर में आप सभी से यही अपील करूंगा कि प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप से किसी की मदद करें। अगर किसी ने अपने को खो दिया है तो उसका सहारा बनने की कोशिश
कीजिए। अगर आपने किसी अपने को खो दिया है तो यह न सोचें कि मैं अकेला या कम संसाधनों
से क्या कर सकूंगा यह याद रखें कि जब रामसेतू का इतिहास लिखा गया तो नन्हीं गिलहरी
द्वारा रेत के कुछ कणों के योगदान का भी जिक्र जरूर आया। कोई प्रयास छोटा नहीं होता
बस किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ाकर देखें आपको सुकून जरूर मिलेगा।
एक अच्छी सोच के साथ नई शुरुवात का समय है ये.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है सुमित
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है सुमित जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर आलेख। इससे बेहतर श्रद्धांजलि और क्या होगी कि अगर हम दूसरों के कुछ काम आ सके
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही जो गए ओ नही आ सकते है पर कुछ ऐसा सद्कार्य करे कि गए हुए लोगोकी आत्मा को शांन्ति मील।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सुमित भाई... उदाहरणों ने पूरे आलेख को जीवंत बना दिया
जवाब देंहटाएंवर्तमान दौर में सकारात्मकता सबसे बड़ी इम्यूनिटी है
जवाब देंहटाएंसुमित के आलेख और काउन्सलिंग इसमें महती भूमिका निभा रहे हैं
आभार और साधुवाद
सुमित जी, बहुत ही सारगर्भित लिखा है आपने। किसी अपने को खोने से दुनिया खत्म नहीं होती। बेहतर है कि आप किसी का सहारा बन जाएं या किसी का साथ ले लें। आप जिन विषयों पर लिखते हैं, वे सटीक नहीं होतीं, बल्कि जीवन पर असर डालती है। ईश्वर आपकी लेखनी को इसी तरह बनाए रखे...साधु
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास है सुमित भाई, ऐसे समय में एक दूसरे की कैसे मदद की जाए, लोगों को उम्मीद दी जाए, शारीरिक और आर्थिक तौर पर मदद के साथ उनका सकारात्मक मनोबल भी बढ़ाया जाए, किसी की हताशा को न बढ़ाया जाए सहयोग किया जाए।
जवाब देंहटाएंजल्द ही इस संकट से मुक्ति मिलेगी।