जिम्मेदारियां निभाने से मिलेगा ‘‘आजादी का अमृत’’
हम देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। पूरा देश में तिरंगे लहलहा रहे हैं। हम सभी एक-दूसरे को स्वतंत्रता की बधाई दे रहे हैं क्योंकि आजादी शब्द ही ऐसा है जो स्वच्छंदता का अहसास कराता है। स्वतंत्रता शब्द सुनते ही हमें अपने अधिकारों का अनुभव होने लगता है लेकिन हम अपने अधिकार पाने की दौड़ में कई बार इस सीमा तक चले जाते हैं कि अपनी जिम्मेदारियों का बोध ही भूल जाते हैं। ऐसे में हमारे नैतिक जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। अधिकार हमारे लिए जरूरी हैं लेकिन देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियां अत्यंत जरूरी हैं। हम सभी जब अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे तभी हमें ‘‘आजादी का अमृत’’ मिलेगा। अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के सहगामी हैं , यह स्पष्ट करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं। एक बार एक गांव में चार मित्रों ने साझेदारी में गाय खरीदी। यह तय हुआ कि प्रतिदिन एक-एक साझेदार उस गाय को रखेगा। प्रतिदिन हर व्यक्ति उस गाय का दूध निकाल लेता लेकिन उसे चारा नहीं खिलाता , वह सोचता कि कल वाले साझेदार ने चारा खिलाया ही होगा और कल फिर उसे चारा मिल जाएगा तो मैं गाय को चारा नहीं भी खिलाऊंगा तो...