जीवन का प्रबंधन सीखाता है श्रीराम का चरित्र


श्रीराम के चरित्र की व्याख्या करना किसी मुख के लिए और लिखना किसी कलम के लिए संभव नहीं है। उनके चरित्र की व्याख्या अपार है जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। श्रीराम के चरित्र एवं उनके जीवन के आदर्शों के माध्यम से हम अपने अपने जीवन का प्रबंधन सीख सकते हैं। हममें से अधिकांश लोग राम को मानते हैं लेकिन राम की नहीं मानते, जिस दिन हमने राम की मान ली तो जीवन में कोई कष्ट रह ही नहीं जाएगा। वास्तव में श्रीराम ने अपने जीवन में मनुष्य से देवतत्व तक की यात्रा को न केवल तय किया है बल्कि चरित्र के सर्वश्रेष्ठ स्तर को हासिल करने का उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने जीवन में हर स्थिति और व्यक्ति के साथ सर्वश्रेष्ठ संबंध निभाकर जीवन का प्रबंधन भी समझाया है और समाज के अंतिम तबके को अपने साथ जोड़कर समाजवाद को भी परिभाषित किया है।  बालपन में ही अपने भाईयों के प्रति स्नेह हो या गुरू के आश्रम पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करना, बात पिता के वचन को निभाने की हो या सखाओं से मित्रता निभाने की, देश में छूपे आक्रंताओं को मारना हो या मर्यादा को प्रस्तुत करना हर जगह श्रीराम ने अपने कर्मों से मनुष्य को जीवन का प्रबंधन सीखाया है, तो चलिए राम नवमी पर श्रीराम के चरित्र की नौ खूबियों से जानते हैं कि कैसे हम श्रीराम से सीख सकते हैं जीवन का प्रबंधन।



1. डिप्रेशन को क्रिएटिविटी से खत्म करना

आज किसी परीक्षा में फेल होने या जीवन की किसी असफलता पर हम डिप्रेशन में चले जाते हैं, अब जरा कल्पना कीजिए श्रीराम का राजतिलक होने वाला था, एक दिन पहले रात को उन्हें पता चलता है कि जिस सुबह उन्हें पूरी पृथ्वी का राजा बनना था, उस सुबह अब उन्हें वनवास जाना है। इतने बड़े आघात को भी उन्होंने बहुत क्रिएटिव ढंग से लिया। जब मां कौशल्या उन्हें स्नेह करनें आयीं तो श्रीराम ने कहा कि मां पिताजी ने मुझे जंगल का राज्य सौंपा है, मुझे गुरूजनों व ऋषियों का सानिध्य मिलने वाला है। और वन की ओर निकल पड़े। वन जाने से पहले जो अयोध्या के राजकुमार राम थे, वह वन से लौटकर मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम बने।

2. कम्यूनिकेशन स्किल

श्रीराम ने परफेक्ट कम्यूनिकेशन स्किल को प्रस्तुत किया है। शिव धनुष टूटने के बाद क्रोधित भगवान परशुराम से जहां श्रीराम ने स्वंय मीठी वाणी बोलकर उनके क्रोध को शांत किया, वहीं अंगद को कम्यूनिकेशन की ट्रेनिंग दी कि उसने जाकर जो रावण से जो संवाद किया वह अमर हो गया। 

3. देश के दुश्मनों का अंत

आज हमारे देश में छूपे देश के दुश्मन हमारे लिए चुनौती हैं। श्रीराम ने अपने जीवन में देश में छूपे सभी दुश्मनों यानी राक्षसों का अंत किया। वह खर-दूषण हों, ताड़का हो या सुबाहू। सभी का अंत किया। श्रीराम राज्य की अवधारणा में देश के भीतर देश के दुश्मनों का कोई स्थान नहीं है।

4. अहंकार से परे

श्री विश्वामित्र जब श्रीराम को लेने आए तो राजा दशरथ ने कहा आप उसे क्यों ले जाना चाहते हैं, मैं आपके साथ चलता हूं तो श्री विश्वामित्र ने कहा कि यौवन, धन, संपत्ति और प्रभुत्व इनमें से एक भी चीज आ जाए तो व्यक्ति अहंकारी हो जाता है और राम के पास यह सब हैं फिर भी उसमें अहंकार नहीं है। इसलिए मुझे राम को ही ले जाना है।

5. गुरू का सम्मान

श्रीराम उस समय के विश्व के सबसे संभ्रांत कुल और सबसे यशस्वी राजा के पुत्र थे लेकिन गुरू से शिक्षा लेने आश्रम ही गए, गुरू उन्हें सिखाने महल में नहीं आए। उन्होंने गुरूओं का हमेशा सम्मान किया। भले आश्रम में हों, ऋषि विश्वामित्र के साथ यात्रा में या वनवास के दौरान ऋषी मुनियों के सानिध्य में। उन्होंने हमेशा गुरूओं का सम्मान किया।

6. शौर्य के साथ धैर्य

इस पूरी दुनिया में जितने भी गलत निर्णय हुए हैं, उसमें से अधिकांश अधैर्य के कारण हुए हैं। श्रीराम हमें धैर्य की सीख देते हैं। श्रीराम शौर्यवान हैं, शक्तिशाली हैं और पराक्रमी हैं लेकिन उन्होंने कभी धैर्य का साथ नहीं छोड़ा और सत्य के प्रति भी अडिग रहे। 

1.   7.समाजवाद की स्थापना

वनवास के दौरान श्रीराम ने किसी राजा से बात नहीं की, वंचितों से बात की। आदिवासियों से मिले, केवट के माध्यम से गंगा पार की, शबरी के बैर खाए और समाज के अंतिम तबके से मिले। उसे मूल धारा में जोड़ने में प्रयास कर समाजवाद की स्थापना की।

8. माता-पिता का सम्मान

पिता के वचन को निभाने के लिए जहां उन्होंने 14 वर्षों के वनवास को स्वीकार किया, वहीं जब भाई भरत माताओं के साथ जब उनसे मिलने पहुंचे तो सबसे पहले कैकई के पैर छूकर परिवार में उनका सम्मान कायम रखा।

9. मित्रता निभाना

सुग्रीव ने जब श्रीराम को मित्र बनाया तो उन्हें किश्किंधा का राज्य दिया, वहीं विभिषण जब उनकी शरण में आए तो उन्हें मित्र बनाकर लंका का राजा घोषित कर दिया। निषादराज और हनुमान ने हमेशा स्वयं को श्रीराम का दास कहा लेकिन श्रीराम ने उन्हें हमेशा मित्र और भाई के स्तर का सम्मान दिया।

जब तक इस सृष्टि में मनुष्यता है तब तक श्रीराम की मर्यादाओं के उदाहरण दिए जाते रहेंगे। अंत में बस इतना कहना चाहूंगा कि श्रीराम सिर्फ श्रीराम किसी धर्म, देश या पार्टी के नहीं बल्कि पूरी कायनात के हैं, जब तक मनुष्यता में एक व्यक्ति जीवित है तब तक राम की मर्यादाएं जीवित रहेंगी। राम ही तो करूणा में हैं, शांति में राम हैं, राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं, राम बस भक्तों नहीं शत्रु के भी चिंतन में हैं, मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में हैं...

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब आपके लेखन में कही चूक नहीं लगातार पढने का मन करता है ढेर सारी शुभकामनाएं

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