मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...


ज़िंदगी... यह शब्द मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि एक अनंत गहराई है, जहाँ भावनाएँ उमड़ती-घुमड़ती हैं, कभी खुशी की लहरें, तो कभी गम के तूफ़ान। यह ज़िंदगी हमें हर पल कुछ नया सिखाती है, पर क्या हम इसके सबक समझ पाते हैं? क्या हम इसका साथ निभा पाते हैं, या बस उम्मीदों के झूले पर झूलते रहते हैं, और जब वे टूटते हैं, तो ज़िंदगी को कोसने लगते हैं?

1961 में आई फिल्म 'हम दोनों' का वह अमर गीत याद आता है – "मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया..." साहिर लुधियानवी के शब्दों में रची, मोहम्मद रफी की आवाज़ में सजी और देवानंद की अदाकारी से निखरी यह रचना सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि जीवन का सार है। यह हमें सिखाता है कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर उसके साथ चलना कितना ज़रूरी है, चाहे रास्ते में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं।

हम अक्सर ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव में उलझ जाते हैं। रिश्तों की उलझनें, जिम्मेदारियों का बोझ और हालात की मार हमें अंदर तक तोड़ देती है। हम दूसरों से उम्मीदों का पहाड़ खड़ा कर लेते हैं, और जब वे उम्मीदें टूटती हैं, तो दिल में सिर्फ़ तन्हाई और खालीपन रह जाता है।

पर क्या हमने कभी सोचा कि ज़िंदगी हमसे क्या चाहती है? क्या वह हमें सिर्फ़ दुख देने के लिए है? नहीं, ज़िंदगी हमें सिखाती है, हमें मज़बूत बनाती है। ज़िंदगी हमें बताती है कि उम्मीदों का बोझ खुद पर न लादो। जो मिला, उसे अपना नसीब मानो, और जो खो गया, उसे भूल जाओ। यही ज़िंदगी का अटल सत्य है।

रिश्ते... यह शब्द सुनते ही दिल में एक मीठी सी हलचल होती है। रिश्ते हमारे जीवन का सबसे अनमोल हिस्सा हैं। पर क्या ये रिश्ते हमेशा खुशियाँ ही लाते हैं? नहीं, कई बार ये रिश्ते हमें गहरे घाव देते हैं, हमें धोखा देते हैं। पर फिर भी हमें इन रिश्तों के साथ चलना होता है, अपने अतीत के ज़ख्मों को भरकर आगे बढ़ना होता है। क्योंकि ज़िंदगी कभी नहीं रुकती, वह निरंतर बहती रहती है।

ज़िंदगी एक अनंत यात्रा है, जिसमें हमें तरह-तरह के अनुभव होते हैं। कुछ पल खुशियों से भरे होते हैं, तो कुछ दुखों से। पर इन सबके बावजूद हमें जीना होता है, अपने जीवन का लक्ष्य तय करना होता है और उस लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना होता है। ज़िंदगी का साथ निभाने का मतलब है कि हमें हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह सुख हो या दुख, सफलता हो या असफलता।

हमारे अंदर चलने वाली यह जंग, यह तनाव, यह अकेलापन... यह सब हमारी अपनी बनाई हुई दुनिया का हिस्सा है। हम दूसरों को बदलने की कोशिश करते हैं, उनसे उम्मीदें रखते हैं, और जब वे पूरी नहीं होतीं, तो हम टूट जाते हैं। पर क्या हमने कभी खुद को बदलने की कोशिश की? क्या हमने कभी अपने अंदर झाँककर देखा?

ज़िंदगी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर होती है। हमें अपनी आंतरिक दुनिया को समझना होगा। जब हम अपने भीतर की शांति को पा लेंगे, तभी हम ज़िंदगी का असली आनंद ले पाएंगे।


यह है जिंदगी का साथ निभाने के सुपर सिक्स:

1. अतीत को भूल जाएं: बार-बार पुरानी बातों को सोचकर समय बर्बाद न करें। वर्तमान में जिएं और हर पल का आनंद लें। 

2. सकारात्मक सोचें: हार न मानें, अपने लक्ष्य निर्धारित करें और भविष्य की आशावादी योजनाएं बनाएं। 

3. रिश्तों को महत्व दें: अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं। याद रखें, रिश्ते जरूरी हैं, लेकिन हर रिश्ते से उम्मीद सही नहीं। 

4. दूसरों को बदलने की कोशिश न करें: अगर जरूरी लगे, तो खुद में सुधार करें या खुद को वर्तमान समय के अनुसार अपग्रेड करें। 

5. जीवन को यात्रा के रूप में देखें: जीवन एक खूबसूरत यात्रा है। इसका आनंद लें। किसी मंजिल की तलाश में यात्रा के आनंद को नजरअंदाज न करें। 

6. जिंदगी का साथ निभाएं: याद रखें, जिंदगी का साथ निभाना आसान नहीं है, लेकिन इसके बिना जिंदगी का आनंद भी नहीं। यही जिंदगी की सबसे बड़ी सीख है।


तो आजइसी पलखुद से वादा करो कि तुम ज़िंदगी का साथ निभाओगेचाहे रास्ते में कितनी भी मुश्किलें आएं। क्योंकि ज़िंदगी का साथ निभाने वाले ही सच्चे विजेता होते हैंऔर यही ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख है।

                                                                              आपका सुमित 


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